बलूचिस्तान को चाहिए मोदी की आवाज़ आज़ादी के आंदोलन को मिला अंतरराष्ट्रीय समर्थन

बलूचिस्तान की आज़ादी की माँग को बल मिला बलूच अमेरिकन कांग्रेस की अध्यक्ष ने पीएम मोदी से किया समर्थन का आग्रह
वाशिंगटन डीसी से आई एक नई अपील ने भारत और बलूचिस्तान के संबंधों में नई ऊर्जा भर दी है। बलूच अमेरिकन कांग्रेस की अध्यक्ष डॉ. नायला कादरी बलोच ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सार्वजनिक रूप से अपील की है कि वे Free Balochistan Movement का समर्थन करें। इस भावुक अनुरोध ने न केवल बलूच समुदाय में उत्साह पैदा किया है बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में भी नई हलचल मचा दी है।
क्या है Free Balochistan Movement?
Free Balochistan Movement यानी बलूचिस्तान स्वतंत्रता आंदोलन, दशकों से चल रहा एक संघर्ष है, जिसमें बलूच लोग पाकिस्तान से स्वतंत्रता की माँग कर रहे हैं। वे अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान, संसाधनों की सुरक्षा और मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। कई बार यह आंदोलन हिंसक रूप भी ले चुका है, लेकिन दुनिया भर में बसे बलूच प्रवासी इसे लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं।
डॉ. नायला कादरी बलोच का पीएम मोदी से अनुरोध
डॉ. नायला ने ट्वीट कर कहा “बलूचिस्तान के लोग भारत से समर्थन की आशा करते हैं। पीएम मोदी से अनुरोध है कि वे बलूचिस्तान की आज़ादी की मुहिम का समर्थन करें और इस संघर्ष में हमारी आवाज़ बनें।”
इस ट्वीट ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा और सोशल मीडिया पर भी बलूचिस्तान की स्थिति को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। डॉ. नायला ने भारत से भावनात्मक जुड़ाव ज़ाहिर करते हुए कहा कि भारत हमेशा लोकतंत्र और मानवाधिकारों का पक्षधर रहा है, इसलिए बलूचिस्तान के लोगों को मोदी से उम्मीद है।
भारत और बलूचिस्तान: ऐतिहासिक संबंध
बलूचिस्तान और भारत के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं। 1947 के बँटवारे के दौरान बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत थी, जिसे जबरन पाकिस्तान में मिलाया गया। कई बलूच नेताओं का मानना है कि उन्हें बिना जनमत-संग्रह के पाकिस्तान में शामिल किया गया, जो आज तक एक विवादास्पद मुद्दा है।
2016 में पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बलूचिस्तान का उल्लेख कर सबको चौंका दिया था। इस बयान ने बलूच आंदोलन को वैश्विक मंच पर पहुँचा दिया था। अब एक बार फिर से बलूच नेता भारत की ओर देख रहे हैं, ताकि उनका मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मज़बूती से उठाया जा सके।
मानवाधिकार उल्लंघन और बलूच जनता की स्थिति
बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन कोई नई बात नहीं है। वहाँ के नागरिकों को लगातार पाकिस्तान सरकार और सेना की कठोर नीतियों का सामना करना पड़ रहा है। अपहरण, गुमशुदगी, फर्जी मुठभेड़ और पत्रकारों पर प्रतिबंध जैसे मामलों की लगातार रिपोर्टिंग होती रही है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन जैसे Human Rights Watch और Amnesty International भी बलूचिस्तान में हो रहे अत्याचारों पर चिंता जता चुके हैं। डॉ. नायला कादरी का मानना है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र की नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इन मुद्दों को वैश्विक मंचों पर उठाए।
भारत की भूमिका और संभावनाएं
हालाँकि भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से अभी तक बलूचिस्तान को समर्थन नहीं दिया है, लेकिन जनता के स्तर पर बलूच लोगों के प्रति सहानुभूति बढ़ी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर भारत बलूच आंदोलन को कूटनीतिक समर्थन देता है, तो इससे पाकिस्तान पर दबाव बढ़ेगा और क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आ सकता है।
इससे पहले भी भारत तिब्बत और बांग्लादेश जैसे मुद्दों पर नैतिक और मानवीय समर्थन देकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अपनी सशक्त भूमिका निभा चुका है। बलूचिस्तान का मामला भी वैसी ही गंभीरता और संवेदनशीलता की माँग करता है।
क्या बोले बलूच कार्यकर्ता?
बलूच प्रवासियों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि भारत खुलकर समर्थन करता है, तो दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देश भी इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगे। न्यूयॉर्क, लंदन और जेनेवा में बलूच प्रवासी समय-समय पर प्रदर्शन करते रहे हैं, लेकिन अब वे चाहते हैं कि भारत उनकी आवाज़ को और ऊँचा करे।
एक बलूच छात्र कार्यकर्ता ने कहा “हमने हमेशा भारत को एक मित्र माना है। मोदी जी की आवाज़ से हमारे आंदोलन को नई ताक़त मिलेगी।”
क्या पीएम मोदी उठाएंगे यह कदम?
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बलूचिस्तान के मुद्दे पर खुलकर बयान देंगे। क्या भारत सरकार इस आंदोलन को नैतिक समर्थन देकर एक नया कूटनीतिक संकेत देगी? यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की माँग अब भारत के दरवाज़े पर है, और उसकी आवाज़ को अनसुना करना आसान नहीं होगा।