पाहलगाम हमले के बाद भारत-पाक तनाव, मोदी-नेतन्याहू की नजदीकी पर बढ़ी नजरें

पाहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है और प्रधानमंत्री मोदी तथा इजरायल के पीएम नेतन्याहू की मजबूत कूटनीतिक केमिस्ट्री पर दुनिया की नजर है। क्या भारत गाजा की तरह सख्त कदम उठाएगा?
जम्मू-कश्मीर के पाहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से तनावपूर्ण संबंधों को और अधिक जटिल बना दिया है। इस बीच, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच बढ़ती कूटनीतिक नजदीकी पर दुनिया भर की नजरें टिकी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ इजरायल की रणनीति से प्रेरित होकर भारत भी कठोर कदम उठा सकता है।
पाहलगाम में हमला और राष्ट्रव्यापी प्रतिक्रिया
पाहलगाम की खूबसूरत वादियों में हुआ यह हमला देश को झकझोर गया। सुरक्षा बलों ने निगरानी बढ़ा दी है और उच्चस्तरीय बैठकें हो रही हैं। ऐसे में भारत की आतंकवाद के खिलाफ नीति पर चर्चा शुरू हो गई है। क्या भारत इजरायल की तरह तुरंत और निर्णायक कार्रवाई करेगा?
मोदी और नेतन्याहू की रणनीतिक मित्रता
प्रधानमंत्री मोदी और नेतन्याहू के बीच बीते वर्षों में संबंध लगातार मजबूत हुए हैं। रक्षा, खुफिया जानकारी साझा करने से लेकर आतंकवाद पर कठोर रुख तक, दोनों नेताओं की विचारधारा में काफी समानता देखी गई है। अब जबकि भारत फिर एक बार आतंकी हमले से प्रभावित हुआ है, ऐसे में यह मित्रता और भी प्रासंगिक हो गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी आतंकवाद के खिलाफ इजरायल की दृढ़ नीति को सराहते हैं और संभव है कि इस हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया भी उसी दिशा में हो।
क्या भारत अपनाएगा इजरायल जैसी नीति?
यह सवाल अब आम जनता से लेकर विशेषज्ञों तक की जुबां पर है कि क्या भारत इजरायल की तरह त्वरित और सीमापार कार्रवाई करेगा? 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक इस बात के संकेत देते हैं कि भारत ऐसा कर सकता है।
एक पूर्व खुफिया अधिकारी ने कहा — “भारत पहले ही साबित कर चुका है कि वह अपनी सीमाओं के बाहर जाकर भी कार्रवाई कर सकता है। लेकिन यह देखना होगा कि क्या भारत इजरायल की तरह अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करने को तैयार है।”
वैश्विक नजरें और कूटनीतिक संतुलन
दुनिया भर की निगाहें भारत की अगली रणनीति पर टिकी हैं। जहां इजरायल ने अभी तक इस हमले पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, वहीं नेतन्याहू के पहले के बयान जिसमें उन्होंने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया था, फिर से चर्चा में हैं। अमेरिका समेत अन्य देशों ने संयम बरतने की सलाह दी है, पर भारत के आत्म-सुरक्षा के अधिकार को भी स्वीकार किया है।
भारत सरकार के सामने अब दोहरी चुनौती है— एक ओर आतंकवाद का सख्ती से जवाब देना और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी छवि संतुलित रखना। इजरायल के साथ बढ़ती मित्रता भारत को अधिक आत्मविश्वास जरूर देती है, पर युद्ध अंतिम विकल्प ही रहेगा।
जनता का आक्रोश और राजनीतिक दबाव
देशभर में इस हमले को लेकर आक्रोश है। सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं और सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग उठ रही है। ऐसे में राजनीतिक दल भी सरकार से निर्णायक कदम की उम्मीद कर रहे हैं।
भाजपा सरकार की छवि एक सख्त नेतृत्व की रही है, जिसने पिछले आतंकी हमलों में त्वरित निर्णय लिए हैं। आने वाले चुनावों के मद्देनजर सरकार इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले सकती।
आगे की राह
भारत अभी शोक की स्थिति में है, लेकिन सबकी निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि अगला कदम क्या होगा। क्या भारत इजरायल की राह चलेगा या फिर राजनयिक रास्ता अपनाएगा? इतना तय है कि प्रधानमंत्री मोदी और नेतन्याहू की रणनीतिक मित्रता आने वाले समय में भारत की नीति को प्रभावित कर सकती है।
यह दौर न केवल भारत की सुरक्षा नीति के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, बल्कि यह भी बताएगा कि वैश्विक स्तर पर बदलते संबंध आतंकवाद के विरुद्ध किस प्रकार के कदमों को जन्म देंगे।