तालिबान नेता ने सार्वजनिक फांसी को बताया शरीया कानून का पालन

तालिबान नेता हिबतुल्ला अखुंदजादा ने अफगानिस्तान में हाल ही में हुई सार्वजनिक फांसी को इस्लामिक कानून का हिस्सा बताया है, जिससे वैश्विक स्तर पर चिंता जताई जा रही है।
अफगानिस्तान में तालिबान नेतृत्व ने हाल ही में चार लोगों को हत्या के मामले में सार्वजनिक रूप से गोली मारकर फांसी दी। इस कार्रवाई की दुनियाभर में तीखी आलोचना हुई है। लेकिन तालिबान सुप्रीम लीडर हिबतुल्ला अखुंदजादा ने इस फैसले को इस्लामिक शरीया कानून का सही अनुपालन बताया है।
स्टेडियम में दी गई सार्वजनिक सजा
फांसी की ये सजा देश के विभिन्न स्टेडियमों में दी गई, जहां भारी भीड़ की मौजूदगी में इन सजाओं को अंजाम दिया गया। यह 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद एक ही दिन में की गई सबसे बड़ी सजा की कार्रवाई मानी जा रही है।
तालिबान प्रमुख का तर्क
कंधार में आयोजित हज प्रशिक्षकों की एक बैठक में अखुंदजादा ने कहा कि इस्लाम केवल इबादत नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन प्रणाली है। उन्होंने कहा कि शरीया कानून का पालन और दंड देना अल्लाह का आदेश है, जिसे लागू करना सरकार का कर्तव्य है।
पश्चिमी व्यवस्था को किया खारिज
अखुंदजादा ने पश्चिमी देशों की कानूनी प्रणाली को अफगानिस्तान के लिए अनुपयुक्त बताया। उन्होंने कहा कि तालिबान की मंशा सत्ता या संपत्ति नहीं, बल्कि इस्लामिक व्यवस्था को पूरी तरह लागू करना है।
मानवाधिकार संगठनों की आलोचना
इन सार्वजनिक सजाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया न्याय के स्थापित मानकों के खिलाफ है और मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है।
तालिबान का न्याय पर रुख
तालिबान का कहना है कि उनके फैसले इस्लामिक न्याय प्रणाली पर आधारित हैं और मृतकों के परिजनों ने भी सजा माफ करने से इनकार कर दिया था। उनके अनुसार, शरीया कानून के तहत यही न्याय है।
अफगानिस्तान के भविष्य पर प्रभाव
इन घटनाओं ने एक बार फिर दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति क्या होगी। सख्त शरीया कानून और सार्वजनिक सजाओं की नीति भविष्य में देश के वैश्विक रिश्तों और आंतरिक स्थिरता पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।
अभी अफगानिस्तान एक नाजुक दौर से गुजर रहा है, और ऐसे में तालिबान की न्याय नीति को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगातार नजर बनाए हुए है। सभी की निगाहें अब इस बात पर हैं कि क्या तालिबान भविष्य में न्याय और मानवाधिकार के बीच कोई संतुलन स्थापित कर पाएगा या नहीं।